केदारघाटी के जाखधार में लगने वाले जाख मेले का जाख देवता के पश्वा के दहकते अंगारों पर नृत्य करने के साथ सम्पन्न हुआ। जाख देवता के दहकते अंगारों पर नृत्य करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। मेला सांस्कृतिक एवं धार्मिक परंपराओं से जुडा.होने के चलते यहां इस बार भी भारी संख्या में भक्त जाख राजा के दर्शनों को आए।
इस बार भी लोगों ने पुरानी परंपरा का निभाया। बैसाखी के दूसरे दिन गुप्तकाशी से पांच किलोमीटर दूर जाखधार में जाख मेले का आयोजन किया गया। जाख मेले में देवशाल, कोठेड़ा, नारायनकोटी के ग्रामीण शामिल हुए। इसके अलावा रुद्रपुर, बणसू, देवर, सांकरी, ह्यूण,नाला, गुप्तकाशी, गढ़तरा, सेमी, भैंसारी समेत कई गांवों के ग्रामीणों ने भी मेले को सफल बनाने में सहयोग किया।
मेला शुरू होने से दो दिन पूर्व कोठेड़ा एवं नारायनकोटी के भक्तजन पौराणिक परंपरानुसार नंगे पांव जंगल में जाकर लकड़ियां एकत्रित कर जाख मंदिर में लाए। जाख मंदिर में कई टन लकड़ियों से भव्य अग्निकुण्ड तैयार किया गया। एक दिन पूर्व रात्रि को अग्निकुण्ड व मंदिर की पूजा करने के बाद अग्निकुण्ड में रखी लकड़ियों पर अमन प्रज्वलित की जाती है।
यहां पर नारायणकोटी एवं कोठेड़ा के ग्रामीण रातभर जागरण किया गया। दूसरे दिन जाखराजा के पश्वा इन्हीं धधकते अंगारों पर नृत्यकिया। इस अवसर के साक्षी बनने के लिए दूर-दूर से भक्तजन बड़ी संख्या में पहुंचे।