पहाड़ों पर सड़क के नाम पर विकास कहां तक पहुंच गया है यह किसी से छिपा नहीं है। उत्तराखंड के पहाड़ों में सड़क जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की कमी के कारण लोगों को समय पर उचित इलाज नहीं मिल पा रहा है. खासकर ग्रामीण इलाकों में रहने वाली गर्भवती महिलाओं के लिए पहाड़ों पर रहना खतरे से खाली नहीं है। पहाड़ों पर सड़कों की हालत इतनी दयनीय है कि गर्भवती महिलाओं को काफी दर्द सहना पड़ता है।
प्रसव पीड़ा के दौरान डोली पर सवार उन लोगों को दूर तक अस्पताल ले जाया जाता है, जो बेहद शर्मनाक है। पिथौरागढ़ का ऐसा ही एक गांव सड़कों जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जी रहा है. हम बात कर रहे हैं पिथौरागढ़ जिले के आखिरी गांव नामिक गांव की, जहां सड़क न होने का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है.
नामिक गांव के लोगों को सड़क नहीं मिलने के कारण समय पर इलाज नहीं मिल पाता है. हाल ही में गांव की एक गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा होने पर डोली के सहारे 10 किमी पैदल चलकर बागेश्वर जिले ले जाया गया, जिसके बाद 35 किमी दूर वाहन से कपकोट अस्पताल ले जाया गया जहां महिला का प्रसव कराया गया.
पिथौरागढ़ गांव के नाम पर आज भी लोगों को सड़क जैसी बुनियादी जरूरत नहीं है. अगर कोई अस्पताल ले जाना चाहता है, तो अब भी लोग उसे डोली के रास्ते मीलों मील चलकर अस्पताल ले जाते हैं। यहां के लोग रोडवेज और संचार सेवाओं की कमी से काफी परेशान हैं.
बता दें कि हाल ही में गांव निवासी गोपाल सिंह की 27 वर्षीय गर्भवती पत्नी गीता को मंगलवार को तेज प्रसव पीड़ा हुई, जिसके बाद गांव के लोग खराब सड़कों पर 10 किमी पैदल चलकर महिला को बागेश्वर ले गए. जहां पर वाहन से महिला को 35 किलोमीटर की यात्रा कर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कपकोट ले जाया गया जहां पर चिकित्सकों की टीम ने महिला का सुरक्षित प्रसव करवाया। केवल गीता ही नहीं बल्कि गांव की कई औरतों का प्रसव इसी तरह से हुआ है।
आखिर कब तक प्रशासन की लापरवाही का खामियाजा गांव के लोग भुगतते रहेंगे. नामिक गांव के लोग लंबे समय से सड़क निर्माण की मांग कर रहे हैं। गांव के ग्रामीण पवन का कहना है कि सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में गांव में कई समस्याएं हैं. उन्होंने कहा है कि सड़क निर्माण का कार्य किया जा रहा है लेकिन बहुत धीमी गति से किया जा रहा है, इसलिए उन्होंने सड़क निर्माण कार्य को तेज गति से पूरा करने की मांग की है.