आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी बेहद साधारण रणनीति के तहत बड़ा कदम उठा रही है. पिछले हफ्ते मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने के बाद भाजपा ने दो साल के इंतजार के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में अपने सांसद अजय भट्ट को फिर से चौंका दिया है.
कुमाऊं से क्षत्रिय को मुख्यमंत्री बनाकर और यहीं से केंद्र में अजय भट्ट को मंत्री बनाकर ठाकुर के साथ ब्राह्मण वोटों को लुभाने का प्रयास किया गया है. इन दो बड़े फैसलों को विपक्षी कांग्रेस की घेराबंदी के तौर पर भी देखा जा रहा है.
2017 के चुनाव में अजय भट्ट को रानीखेत सीट से हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन सांसद भगत सिंह कोश्यारी की जगह भाजपा ने तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट को नैनीताल-उधम सिंह नगर सीट से सक्रिय कर उन्हें सक्रिय बनाने का संदेश दिया था. राज्य की जगह केंद्र की राजनीति
अजय को कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के खिलाफ खड़ा किया गया था। चुनाव के समय प्रदेश अध्यक्ष का प्रभार संभाल रहे भट्ट पर अपने अलावा चार अन्य सीटों पर जीत दर्ज करने की दोहरी जिम्मेदारी थी. उनकी सांगठनिक क्षमता के साथ-साथ उनकी राजनीतिक साख की भी परीक्षा हुई. अजय ने न केवल हरदा को रिकॉर्ड 3 लाख 39 हजार 96 मतों से हराया, बल्कि चार अन्य सीटें जीतकर मजबूत संगठनात्मक क्षमता भी दिखाई।
अजय उच्च संगठन और राजनीतिक कद के कारण केंद्र में उत्तराखंड कोटे से मंत्री पद पाने की दौड़ में शामिल थे। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में अल्मोड़ा के सांसद अजय टम्टा को कैबिनेट में जगह मिली है. इसे देखते हुए अजय भट्ट को जगह मिलने की उम्मीद थी, लेकिन डॉ. रमेश पोखरियाल को निशंक ने मार डाला और भट्ट को दिल से जीना पड़ा.