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उत्तराखंड ने मांगा भूमि कानून, सोशल मीडिया पर छिड़ी आर-पार की लड़ाई

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पिछले कुछ हफ्तों से सोशल मीडिया पर उत्तराखंड में भूमि कानून की मांग ट्रेंड कर रही है। उत्तराखंड में भूमि कानून लागू करने की मांग लगातार उठाई जा रही है। ऐसा लगता है कि पहाड़ी के लोग अब पिछले भूमि कानून में सुधार लाकर ही राहत की सांस लेंगे। यह एकमात्र लड़ाई है जो उत्तराखंड के अधिकारों की लड़ाई है या हमारे अधिकारों की लड़ाई है। अब सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या हो गया है कि उत्तराखंड में सख्त भूमि कानून लाने की बात हो रही है?

एक रिपोर्ट के अनुसार, जब उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ था, वर्ष 2002 तक, अन्य राज्यों के लोग उत्तराखंड में 500 वर्ग मीटर तक ही जमीन खरीद सकते थे। 2007 में इस सीमा को बढ़ाकर 250 वर्गमीटर कर दिया गया था। इसके बाद सरकार द्वारा 6 अक्टूबर 2018 को एक नया अध्यादेश लाया गया। इसके अनुसार, उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि सुधार अधिनियम, 1950 में संशोधन के लिए एक विधेयक पारित किया गया और धारा 143 (क) धारा 154 (2) जोड़ा गया।  यानी पहाड़ों में जमीन खरीदने की अधिकतम सीमा खत्म कर दी गई।

एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 के आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तराखंड में कुल 8,31,227 हेक्टेयर कृषि भूमि 8,55,980 परिवारों के नाम दर्ज थी। इनमें 5 एकड़ से 10 एकड़, 10 एकड़ से 25 एकड़ और 25 एकड़ से ऊपर की तीनों श्रेणियां शामिल हैं। जोतों की संख्या 1,08,863 थी। इन 1,08,863 परिवारों के नाम पर 4,02,22 हेक्टेयर कृषि भूमि दर्ज की गई, जो कि राज्य की कुल कृषि भूमि का लगभग आधा है। 5 एकड़ से कम भूमि वाले शेष 7,47,117 परिवारों के पास केवल 4,28,803 हेक्टेयर भूमि पंजीकृत थी।

उपरोक्त आंकड़े बताते हैं कि किस प्रकार राज्य में लगभग 12 प्रतिशत किसान परिवारों के पास आधी कृषि भूमि है और शेष 88 प्रतिशत कृषक आबादी भूमिहीन की श्रेणी में पहुंच गई है।

हिमाचल की तुलना में उत्तराखंड का भूमि कानून बहुत लचीला है। इसलिए सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय लोग हिमाचल जैसे मजबूत भूमि कानून की मांग कर रहे हैं।

हिमाचल का भूमि कानून क्या है
1972 में हिमाचल में सख्त कानून बनाया गया। इस कानून के तहत बाहरी लोग हिमाचल में जमीन नहीं खरीद सकते थे। दरअसल उस समय हिमाचल इतना समृद्ध नहीं था। आशंका थी कि हिमाचल के लोग अपनी जमीन बाहरी लोगों को बेच सकते हैं। यह स्पष्ट था कि वह भूमिहीन हो जाएगा।

भूमिहीन होने का अर्थ है अपनी संस्कृति और सभ्यता को भी खोने का खतरा। दरअसल यह कानून हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार लाए थे। भूमि सुधार अधिनियम 1972 के प्रावधान के तहत अधिनियम के अध्याय 11 में भूमि के हस्तांतरण पर नियंत्रण की धारा-118 के तहत हिमाचल में कृषि भूमि नहीं खरीदी जा सकती है।

गैर हिमाचली नागरिकों को यहां जमीन खरीदने की अनुमति नहीं है। आप व्यावसायिक उपयोग के लिए जमीन किराए पर ले सकते हैं। 2007 में, धूमल सरकार ने धारा-118 में संशोधन किया और कहा कि राज्य के बाहर का कोई व्यक्ति, जो 15 साल से हिमाचल में रह रहा है, वह यहां जमीन ले सकता है। यह बढ़ता गया और बाद में अगली सरकार ने इसे बढ़ाकर 30 साल कर दिया।

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Ankur Singh
Ankur Singhhttps://hilllive.in
Ankur Singh is an Indian Journalist, known as the Senior journalist of Hill Live
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