चमोली के उर्गम घाटी में प्राकृतिक जल स्रोतों को रिचार्ज करने में जुटे ग्रामीण
तेजी से सूखते जल स्रोतों से पानी का संकट बढ रहा है। भूकम्प, भूस्खलन से पानी जमीन के अंदर अपना मार्ग बदल रहे हैं या फिर अलग अलगकारणों से पहाड़ों में भी जल स्रोत सूख रहे हैं। नौले धारों पर पानी कम होने से लोगों को पानी के संकट से भी रोज दोचार होना पड़ रहा है। ऐसे वक्त में चमोली जिले की घाटी में ग्रामीणों और जनदेश सामाजिक संगठन के द्वाराह्पपानी उगाओह्न अभियान चलायाजा रहा है।
जो बहुत हद तक सफल हो रहा है। जहां पानी विलुप्त होने की कगार पर आ गया था, वहां फिर पानी आने लगा। ये ग्रामीणों की सफलता ही है कि, उर्गम घाटी के जंगल और जमीनपर कई स्थानों पर जल सम्भरण क्षेत्र बन रहे हैं। दो दर्जन गांवों को जोड़ा :उर्गम घाटी के गांवों में 2003 से पानी उगाओ अभियान की शुरुआत ग्रामीणों और जनदेश संस्था ने शुरु ‘की। जनदेश के लक्ष्मण सिंह, महिला मंगल दल की अध्यक्ष भागीरथी देवी, महिला मंगल दल की माहेश्वरी देवी, राजेश्वरी, हरकी देवी, पूर्ण देवी बताती हैं गांव, घाटी में निरन्तर जल स्रोत सूख रहे थे।
इसके साथ ही चारा पत्ती का अभाव भी होने लगा। इसे देखते हुए पानी उगाओ अभियान की शुरूआत की गई। 2 दर्जन से अधिक गांवों को इसमें जोड़ा गया है। घाटी के गीरा, बांसा, देवग्राम, भरकी भेंटा, पिलखी, थैंग, दशोली ब्लाक के मानोरा, निजमूला, सैंजी गांवमें चाल खाल की परंपरा शुरू की गई।
कई गांव में छोटी-छोटी चाल खाल की परंपरा को आगे बढ़ाते हुये, जल स्रोतों को पुर्नजीवित करने का काम कर दिया है। गांव की महिलाएं चाल-खाल खोदती हैं, उसमें बीजबोतीं हैं और उस जलामम क्षेत्र का प्रबंधन करती हैं। जनदेश संस्था के लक्ष्मण सिंह नेगी बताते हैं। इन प्रयासों को विस्तार दिया जा रहा है।
पौधरोपण पर फोकस
पानी उगाने और जल सम्भरण क्षेत्र बनाने के लिये ग्रामीण सामूहिक पौधरोपण करते हैं। अब तक
15 हजार से अधिक का रोपण किया गया। जिनमें 7000 से अधिक वृक्ष बनकर खड़े हो
चुके हैं। अधिकांश चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष हैं। पानी के लिये झाडियों ने भी योगदान दिया।
- सूखते जल स्रोतों के आस पास पौधरोपण किया
- उर्गम घाटी के ग्रामीणों की सामूहिक सफलता से जगी आस