विश्व पर्यावरण दिवस 2021: नदियों, बुग्याल और प्रकृति का अनूठा संसार है उत्तराखंड
हिमालयी राज्य उत्तराखंड का पर्यावरण के क्षेत्र में अनूठा योगदान है। वन क्षेत्र राज्य के कुल क्षेत्रफल के 71 प्रतिशत यानि 38,000 वर्ग किमी में फैला हुआ है। इसमें नदियों को सदानीरा बनाने वाले ग्लेशियर,कार्बन को सोखकर ऑक्सीजन देने वाले वन, देश के मैदानी इलाकों और मैदानी इलाकों के लोगों की प्यास बुझाने वाली नदियां और इस पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने वाली व्यवस्था यहां का अमूल्य खजाना है।
कोविड-19 महामारी में पर्यावरण के इस अनोखे खजाने की अहमियत हम शायद समझ गए होंगे। अभी तक पर्यावरण सेवाओं के बाजार मूल्य के आकलन का कोई फार्मूला नहीं था। कुल सकल घरेलू उत्पाद में राज्य की वन संपदा का योगदान केवल 1.3 प्रतिशत दिखाया गया था। लेकिन राज्य के अर्थशास्त्र और संख्या विभाग ने एक अध्ययन किया और हरित लेखा के माध्यम से बताया कि उत्तराखंड 95,112.60 करोड़ रुपये की पर्यावरण सेवा प्रदान कर रहा है। राज्य की वन संपदा का कुल स्टॉक लाभ 14 लाख 13 हजार 676 करोड़ रुपये है।
इसलिए उठी ग्रीन बोनस की मांग
पर्यावरण सेवाओं के बदले उत्तराखंड पिछले एक दशक से ग्रीन बोनस की मांग कर रहा है। पर्यावरण सेवाओं का वैज्ञानिक आधार बनने के बाद उत्तराखंड की इस मांग को बल मिला है। लेकिन नीति निर्माता अभी इस मामले में उदार नहीं हैं।
अनूठी और मूल्यवान पर्यावरण सेवाओं के आँकड़े
- 95,112 करोड़ है पर्यावरणीय सेवाओं का प्रवाह मूल्य।
- 1413,676 करोड़ रुपये कुल वन एवं पर्यावरणीय संपदा का भंडार जमा है।
- 7,211,01 करोड़ रुपये की तो इसमें टिंबर का स्टॉक है।
- 255,725 करोड़ मूल्य का कार्बन हर साल सोख लेते हैं राज्य के वन।
- 4,36,849 करोड़ है राज्य की वन भूमि की कीमत।
स्रोत: (उत्तराखंड अर्थ एवं संख्या विभाग की ग्रीन एकाउंटिंग अध्ययन रिपोर्ट से)